Friday 27 March 2015

खेल में हार - जीत के मायने

खेल में हार - जीत के मायने 

सौहार्द के खेल में जीत की सौगात नहीं होती हैं। किसी भी खेल में एक दाल की हार ही विपक्ष की जीत सुनिश्चित करती हैं और वैसे भी क्रिकेट अनिश्चिताओं का खेल हैं तो पहले से ही विजय का अनुमान लगाकर बैठना खुद को दिलाशा देना मात्र भर हैं। खेल कभी भी दो देशों के मध्य नहीं बल्कि प्रतिभागियों के बीच खेला जाता हैं ,जिसका मतलब सौहार्द बढ़ाना होता हैं ,ना की किसी तरह की हानि पहुँचाना। अपनत्व की भावना हर  मानव के मन में होती हैं और हर कोई चाहता हैं की जीत बस हमारी हो। आज के हार से दुखित होकर तोड़ - फोड़ करना और खिलाडियों पर दोषारोपण करना खेल की मौलिकता को छिन्न करना हैं। जिस तरह हम जीत का स्वागत करते हैं ठीक उसी तरह हमे हार को स्वीकारते हुए खिलाड़ियों के मनोबल को उत्साहित करना ही सर्वोत्तम होगा। यह कोई कम गरिमा की बात नहीं की हम विदेशी पिचों पर भी उम्दा प्रदर्शन कर के  सेमीफाइनल तक लड़े और गरिमा तो बस गरिमा ही होती हैं।  विश्वासी खिलाडियों के खरे न उतरने से भले ही हमे हार का सामना करना पड़ा पर इस बात से भी हम कतई नाकारा नहीं कर सकते हैं की अबतक जिस जीत के जश्न  में हम मग्न थे तो वह भी इन्ही खिलाडियों की देंन  थी।  हम समर्थकों को हांरे हुए खिलाडियों के भावनाओं को पढ़कर , उन्हें फिर से उत्साह की नई ऊर्जा देनी चाहिए ताकि कल की जीत सुनिश्चित हो। हर जीत के पीछे हार हैं और जहाँ हार नहीं वहां जीत भी नहीं होती हैं। धोनी के धावकों की लगातार बढाती हुई  गति सेमीफाइनल में थक ही गयी और यही वजह हैं की जीत में डूबे हम भारतियों को जब हार का घूँट मिला तो मन तिलमिला उठा।  समर्थकों के बौखौलाहट को भी हम  नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते क्यूंकि कंगारूओं के समक्ष शेरों का बिल्ली बन जाना बस एक बुरे स्वप्न -सा लगा। इस मैच के दौरान गेंदबाज से लेकर बल्लेबाज़ तक सब के सब दूध काम पानी ज्यादा नज़र आये तो भला आज के दौर में मिलावट कौन बरदाश्त करेगा भला ? ठीक हैं कोई बात नहीं जीत के साथ हार हैं तो प्यार के साथ तकरार तो लाज़मी हैं। परन्तु मैं विराट - अनुष्का की बात नहीं बल्कि भारतीयों का प्यार की बात कर रहा हूँ । 
                                            इस हार में  हड़बड़ाहट साफ़ - साफ़ दिख रही हैं जो की हमारे हार की वजह सदियों से बनी चली आ रही हैं। लक्ष्य चाहे जितना भी बड़ा हो अगर संघर्षमय हौंसला हो तो जीतना आसान हो जाता हैं लेकिन  भारतीय टीम का आल - आउट हो जाना संकेत दे रहा हैं की आत्मविश्वास के पीच से परे हो कर गेंदबाज़ी व बल्लेबाजी की गई हैं।  धोनी एक आत्मविश्वासी कप्तान के नाते उन्हें अपने साथी खिलाडियों को भी विश्वास दिलाने की जरुरत हैं और हांरे के हक़ में हँसी तो नहीं मिलती हैं पर एक नयी जीत हासिल कर के हम अपनी गरिमा को प्यार व सम्मान से बरक़रार रख सकते हैं । आप हारे या जीते हम समर्थकों का स्नेह सदैव समान  ही रहेगा।