रविन्द्रनाथ
टैगोर, इकबाल, सुमित्रानंदन पंत, बंकिमचंद्र, पाश और भी बहुत सारे महान
कवि व लेखको ने देश का गुणगान अपने अपने ढंग और अपने इच्छा से व्यक्त किया
आज के दौर में भी जारी है यह सिलसिला. क्योंकी हर इंसान को अपने वतन से
प्यार होता है, चाहे वह व्यक्ति अपने निजी जिंदगी में कितना भी बुरा क्यों न
हो. जब देश की बात होती है ताे रिक्शा वाला हो या फिर विमान वाला कोई अपने
देश की बुराई नहीं करता है क्योंकी मिट्टी प्यारा न कोई रिश्ता है और न ही
कोई धर्म. देश सुरक्षित है तो सब सुरक्षित है और यदि देश असुरक्षित है तो
फिर ना फिर मां बचेगी और ना ही कोई धर्म कर्म. यानि की देश की इज्जत ही
हमारी मान मर्यादा और संपति है. इसलिये तो कहा जाता है राष्ट्र प्रथम लेकिन
जरा आज के मौजूदा भारत पर एक नजर डालिये तो क्या प्रथम है, धर्म जाति
पार्टी या देश! आप चाय दुकान पर जाइये या फिर डायमंड दुकान पर हर जगह पर बस
एक ही चर्चा चल रहा है की कौन राष्ट्रवादी है. बाकी आप अखबार और टीवी पर
तो रोज नयी नयी परिभाषा देख व सुन ही रहे है, कोई लाल सलाम बोल कर लाल हो
रहा है तो कोई भारत माता की जय बोल कर खुद को देशभक्त बता रहा है लेकीन
वास्तव में देखिये तो ये बस अपना अपना लय बना रहे है आम लोगों का हीरो बनने
के लिये. क्योकी भारत की आजादी के लिये लडने वालों ने सिर्फ देश के लिये
लडा और खुद को मिटा दिया मिट्टी के लिये. कभी भी सुबाष चन्द्र बोस ने यह
नही कही था की जो लोग 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा
नहीं लगायेंगें वो देशभक्त नही है और ना ही बापू ने कभी किसी तरह के नारे
के आधार पर देशभक्ति का प्रमाण दिया. हां यह सच है कि उस वक्त हर
क्रांतिकारी दल का अलग अलग नारा था लेकीन लक्ष्य केवल एक था भारत की आजादी
और ना ही कभी किसी क्रांतिकारी ने किसी अन्य क्रांतिकारी को गलत कहा. सीधी
सपाट बात तो यही है की देशभक्त बनने का कोई मापदंड नही होता है, न ही
राष्ट्रप्रेम का कोई परिभाषा और ना ही कोई यह साबित कर सकता है की देश से
कौन कितना प्यार करता है. बीबीसी हिंदी वरिष्ठ विश्लेषक आकार पटेल के एक
लेख के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रवाद की बुराई अंतर्राष्ट्रीय
मिडीया में भी जोरो से हो रही है. यह शत् प्रतिशत सच भी है क्योंकी बीजेपी
के सत्ता में आने के बाद खान पान, जन आंदोलन, रंग, बोल चाल ये सब कुछ देश
विरोधी होने लगा क्योकि बीजेपी वालो काे यह पसंद नही है.भारत के वरिष्ठ
पत्रकार ओम थानवी, राजदीप सर देसाइ व अन्य पत्रकारों ने भी कडी निंदा की और
अन्य राष्ट्रीय स्तर की मिडीया भी आज तक आलोचना कर रही है लेकीन अपनी धुन
में गुम इन लोगो पर कोई असर ही नहीं है. देश की बदनामी देश के बाहर तक होने
लगी है और हम है की राष्ट्रवाद के आड में बस खुद को मशहूर करने में मशगूल
है. क्या वाकई में हम इतने अवसरवादी हो गये है की देश के गले को बांध कर बस
मुद्दा उछाल रहे है.