Wednesday 4 January 2017

महिलाओं को 'हिलाओं' बनाने में भी पुरुषों का हाथ-

महिलाओं को 'हिलाओं' बनाने में भी पुरुषों का हाथ-

जी हाँ, यह अब तक का सबसे बड़ा खुलासा है. खुलासा करने वाली कोई महिला नही बल्कि एक जवान  लड़का कर रहा है. यह कोई गलत बात नहीं हैं आपने भी तो देखा ही होगा, ये 'हिलाओं' वाला कारनामा और यह भी हो सकता है की आपने किया भी हो! क्योंकि किसके दिमाग में कब दाद-खुजली होने लगे और हाथ उसको खुजला - खुजला कर के 'हिलाओ' वाली प्रक्रिया में प्रिय बना देते हैं. जब हमारी नज़र पड़ती हैं तो फिर मुस्कुराने से भी नहीं कतराते, मंद-मंद गुलाटी मारती मुस्कान, आह! कितना मजा आ रहा हैं ना! पढने में भी और यह कारनामा करने में तो और भी मजा ही आया होगा. मजे के लिए तो हम कुछ भी कर देते है इसके नमूने आपको पब्लिक टॉयलेट से लेकर के हर जगह देखने को मिलते है.

'हिलाओ' दिखेगा बस और ट्रैन में- 

जी हां, बिलकुल वही जहाँ पर लडकिया /महिलाएं बैठती है. वहीं पर यह कारनामा दिखता है. सीट के ऊपर लिखा होता है महिलाओ और कुछ लोग उसको हाथ से हिला-हिला कर के 'हिलाओं' में तब्दील कर देते है. इससे यह पता चलता है की वो लोग हिलाने में माहिर हैं. लेकिन ऐसा छेड़छाड़ तो पुरुषों के साथ तो नहीं करते हैं ये खुरापाती वाले लोग. अरे, भाई ऐसे ही हिला कर जिंदगियां चल जाएगी हासिल का होगा, बाबाजी का... जो भी समझ लो, क्योंकि तुम्हारी सोंच की बराबरी मैं नहीं कर सकता हूँ. 


ट्रेन और पब्लिक टॉयलेट का दरवाजा या प्यार का गेट- 

'हिलाओं' तक ही इनका कारनामा नहीं रुकता, ट्रेन और पब्लिक टॉयलेट के दरवाजा को तो प्यार की चिट्ठी बना दिए हैं. सोना, मोना, कोना आदि के नाम मोबाइल नंबर तक लिख देते है. इतना ही नहीं, मिलने का टाइम और पता भी, जैसे की लडकिया इनकी खेत की उपज हों. भाई ये कौनसा प्यार है तुमरा, जरा हमे भी बता दो, ताकि तुमको इसके लिए कोई रत्न दिलावे दे. आखिर महिलाओं के प्रचार-प्रसार में इतना योगदान देने के लिए कोई सम्मान तो देना पड़ेगा ना. या फिर बस ऐसे ही छुप-छुप के 'हिलाओं' कार्यक्रम करते रहोगे. 

जुबानी गाली जो खानदानी है -

जुबानी गाली जो खानदानी है -

गालियाँ तो गलियों की पहचान करवाती हैं. गालियाँ देने से काम सरल और सहज हो जाता है. गाली भी लेख का विषय बन जाएगी यह मुझे भी नहीं पता था लेकिन गाँव का गली जब फेसबुक के जरिए जुड़ा तो पता चला कि यह गाली भी बङे कमाल की चीज है तो फिर सोचा कि चलो फिर गाली - वाली बात को ध्यान में रखते हुए कुछ मौज कर दिया जाए. जब मैं दसवीं कक्षा में था तो मुझे देर रात तक पढ़ाई करनी पड़ती थी ताकि मम्मी से कोई गाली सुनने को ना मिले और मम्मी भी सुबह जल्दी उठकर काम करने लगती ताकि दादी उनको भोरे - भोरे खरी खोटी ना सुना दे. गांव में गाली हर गली में अलग अलग तौर पर होती है तभी तो मेरी दादी आवाज सुनकर ही बता दिया करती है कि यह गालियाँ नुनिया टोली से आ रही हैं और यह कलवार टोली से लेकिन मैं तो बस इतना ही समझता हूं कि यह बस गाली - गलौज है, चाहे देने वाला कोई भी हो या जिस गली का हो. बस वह डर बना रहा है सामनेवाले में ताकि उसकी धाक बनी रहे. यह बात एक दिन मैं फोन पर अपने दोस्त को बता रहा था कि मेरी दादी बोलने लगी कि ज्यादा पढ़ाई का यह रिजल्ट हैं कि तुम अब खानदानी परम्परा पर भी सवाल उठा रहे हो और जो गालियाँ देना शुरू की मेरी तो बोलती बंद हो गई क्योंकि मुद्दा खानदानी था इसलिए मैं चुपचाप बैठा हुआ सोचने लगा कि लोग गाली-गलौज को भी खानदानी परम्परा बना रहे हैं. इसीलिये तो बहुएं सुबह जल्दी उठकर चौका बर्तन पर भीड़ जाती हैं, वो भी घूँघट लटकाए और बिना खटर - पटर के सारा कुछ साफ. एक दिन पान के दुकान पर बैठा था कि एक काका आए और पांच-छह बार प्यार से पान मांगे लेकिन पान नहीं मिला फिर थोड़ी देर बाद जब खानदानी भाषा का प्रयोग किए तो जादू की तरह पान उनके मुंह में चला गया. मैं तो सोच में पड़ गया तभी पान वाला बोला लेखक महोदय ज्यादा मत सोचिए क्योंकि उनकी गाली के बिना मैं पान बना नहीं सकता हूं. अगर काका ऐसे गाली नहीं देते तो उनके ऊपर पानी फेंक दिया जाता ताकि पांच साल की परम्परा जारी रहे. अब आप बताइए कि गाली सुनकर मजा आता है कि नहीं?मैं बोला भईया गाली और मजा! फिर निकला चकमक सवाल के घेरे से. लेकिन मैं जैसे ही कुछ दूर आया तो पता चला कि मशहूर दादा का देहांत हो गया है तो फिर क्या, मैं चला उनके घर तो दादी का आलाप विलाप सुनकर हैरान रह गया कि कोई यह कह कर भी अंतिम विदाई देता है क्या ' अब मुझे कौन सुबह - सुबह गाली देगा, कैसे मैं काम करूंगी....'. जब मैंने यह बात अपने घर में बताई तो मेरी दादी तपाक से बोली ' साँप का बच्चा है तू, यही सब ना सुनने जाता है कुकुर कही के' लेकिन जैसे ही दादा जी उठे दादी की तो बोलती बंद क्योंकि खानदानी गाली का डर है. किसी की माँ - बहन करना सरल है ना अपनी बात मनवाने के लिए या सच बोलने वाले को चुप कराने के लिए लेकिन क्या करें यह तो जुबानी गाली खानदानी है जो कि अब सोशल मीडिया पर भी छा चुकी हैं और बोलने वाले तो अभी भी बोलेंगे ही कि साले ने क्या लिखा है,पुरा कुत्ते की तरह भौंकता है, तूने तो मार दी मेरी, पुरा दिया रे... परन्तु अब आप ही बताइए कि गाली अच्छी होती हैं या बुरी, सभ्य या अभद्र? गाली देना चाहिए या सुनना चाहिए? सब भूल गए ना गाली के गलियारों में, पता हैं फिर गाली दोगे खुद को बचाने के लिए या स्वयं को सही साबित करने के लिए ताकि खानदानी जुबान पर जंग़ ना लगे.