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दिल्ली की दिसम्बर ठण्ड से भरी रहती है, कोई ठंड से तो कोई काम से सो नही पाता है. वैसे भी दिल्ली में भाग दौड के बिना रोटी का मिलना मुश्किल है. लेकिन इस भीड़ भाड़ की दिल्ली में भी कोई लड़की सुरक्षित नहीं हैं, ना घर में ना रोड पर . 12 दिसंबर 2012, की रात को भला कौन भूल सकता है. खैर आपने व्यस्तता के कारण भूला दिया होगा लेकिन निर्भया की मां कैसे भूल सकती है, वह कलमुहा दिन. क्योंकि बेटा बेटी को खोना दुर्भाग्य होता है लेकिन अपनी बेटी को बलात्कार का शिकार होते देखना, क्या इससे बडा भी दुर्भाग्यपूर्णं कुछ होगा किसी भी मां बाप के लिये. निर्भया की मां ने कभी भी नही सोचा होगा की 23 साल से सिंच संजो कर रखी बेटी को इस तरह विदाई देना पडेगा. उसकी मां ने तो एक एक दिन जोडा होगा की अब मेरी बेटी आयेगी डीग्री, जॉब लेकर और इसी ख्वाब के साथ तो हर किसी के माता पिता जिंदा रहते है. लेकिन 04 साल से ऐसा ख्वाब नही आया और ना ही आयेगा, निर्भया की मां को. निर्भया कोई पहली लडकी नही है जिसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ क्योंकी इससे पहले भी लगभग 66 बलात्कार प्रतिदिन हुये थे और निर्भया के केस के बाद 90 बलात्कार प्रतिदिन हो ही रहे है. एक प्रकार से देखा जाये तो निर्भया के केस के बाद हम एकजुट व जागरुक दिखे लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो ने जब शोध कर के आंकडा दिया की निर्भया के केस के बाद बलात्कार दोगुना बढ गया है. यानि की हर 14 मिनट पर कोई निर्भया तो कोई दामिनी लुटी जा रही है, दम तोड रही है. लेकिन जिस दिल्ली में हम इसका विरोध किये वही दिल्ली इस क्राइम के क्षेत्र में पहले स्थान पर है. जन आंदोलन कर के हम लोगों ने विरोध किया और अपराधियों को गिरफ्तार भी करवाया लेकिन आंकडे तो कह रहे है कि हम आज भी खामोश है. निर्भया का केस एक आधार बन गया रेप क्राइम एजेंसी, मीडिया व आंदोलन करने वालों के लिये लेकिन बलात्कार तो अपने रफ्तार से बढता ही जा रहा है. हम कहीं ना कहीं सिर्फ अपने कार्य क्षेत्र व दायित्व के दायरे में सिमट कर रह गये है और समाजिक कर्तव्य को भूला बैठे है. अगर हमें इस बात का ख्याल रहता की निर्भया, दामिनी मेरी अपनी है तो फिर बलात्कार कम होते और अगर रेप होते भी तो हम उन बलत्कारियों को सजा देने के लिए त्वरित फैसला लेते और सब के लिए समान सजा होना चाहिये. क्यूँकि अगर कोई बच्चा होकर यह जान सकता है कि सेक्स कैसे करते है और यही मौका है रेप करने का तो फिर क्या वह बच्चा है. यह कैसा बच्चा है जो व्यस्कों का काम निडर हाेकर करता है. बलात्कार तो बस बलात्कार ही हैं, तो फिर उनको बचाना क्यों, एेसे में बलात्कारी का मनोबल बढेगा ही बढेगा. अन्य चीजों से तो बचने का अवसर भी है लेकिन विश्वास के आड में होने वाले बलात्कार से नारी कैसे बचेगी. अब नारी किससे - किससे बचेगी क्योंकि उसको नोचने वाला बाप, भाई, शिक्षक और अजनबी सब मौके के आड में बैठे है. ऐसे में नारीयों को खुद के ऊपर भरोसा कर के चलना ही बेहतर है, क्योंकि इस लचर व्यवस्था को बेहतर होते - होते तो जाने कितनी निर्भया शिकार हो जाएँगी और नारीयों को मुद्दा बना कर उपभोग होता रहेगा. जाने कितनी निर्भया निर्भय हो कर तमाम क्षेत्र में जज्बें के साथ काम कर रही हैं फिर भी किसी कोने में कोई दामिनी, सूर्यनेल्ली और निर्भया जिन्दा हैं, इंसाफ के इंतजार में या लूटने के लिए, यह बता पाना मुश्किल हैं.
YAAR HEART TOUCHING LINES , BUT IT THE REAL FACE OF OUR cOUNTRY ALTHOUGH WE ARE SAYING THAT WE ARE DEVELOPING IN THE SOCIETY BUT IN REALITY WE ARE DIGGING GRAVE FOR OUR SELVES ONLY
ReplyDeleteYAAR HEART TOUCHING LINES , BUT IT THE REAL FACE OF OUR cOUNTRY ALTHOUGH WE ARE SAYING THAT WE ARE DEVELOPING IN THE SOCIETY BUT IN REALITY WE ARE DIGGING GRAVE FOR OUR SELVES ONLY
ReplyDeleteAaj main bhi Rape ratio dekha to khud ki kalam ko na rok paya. aur bahut hee sharmshar feel hua yaar.
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