Sunday 27 March 2016

हिंदी भाषा पर विवाद नहीं कार्य होने चाहिये-


एक पुरानी कहावत के अनुसार भारत में डेढ कोस पर पानी और वाणी बदलते है. यानी की यहां पर हर समुदाय का अपना अपना क्षेत्रीय भाषा है. ज्यादातर ताे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में हमें अलग अलग तरह की भाषाएं मिलती है. इसके साथ साथ अन्य तरह की भी विभिन्नता पायी जाती है. तभी तो अखण्ता व विभिन्नताओं के लिये हमारा देश विश्व प्रसिध्द है और इन्ही परिवर्तनों को देखने व अध्ययन के हेतु विदेशी यहां भ्रमण करते है. क्योंकी इतनी विभिन्नताओं के बावजूद भी एकता का होना अन्य देशों के लिये चर्चा व शोध का केंद्र है. लेकिन कुछ सालों से हम भाषा के लिये आपस में विवाद शुरू कर दिये है. परंतु हम यह भलिभांति जान नही पा रहे है की क्या इस तरह से भाषा का   विकास संभव है. वाकई में यह भाषा है क्या? वैसे तो यह कोई छोटा विषय वस्तु नहीं है लेकिन यदि सीधी सपाट शब्दों में बोले तो भाषा संचार या वार्तालाप का माध्यम मात्र है, जिसके द्वारा हम अपनी अभिव्यक्ति , विचार व सलाह को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते है. भाषा सफलता की सीढी है क्योंकी ज्यों ज्याें भाषा विकास के ओर बढा है, त्यों त्यों मानव सभ्यता का विकास हुआ है. भाषा के महत्व और मतलब को समझना है तो किसा गूंगे व्यक्ति से बात कर लिजिये और जरा कल्पना किजिये की जब भाषा नही होंगी तब कितना दिक्कत हाेता होगा, अपने बातों को जाहिर करने के लिये. या हम यूं कहे की भाषा के बिना इंसान गूंगा है. 


आधुनिक काल में भाषा का बढता क्षेत्र- 

आज के दौर में भाषा का क्षेत्र व्यापक रूप से तेजी से बढ रहा है क्योंकी अब तक के विकास मॉडल पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि वास्तव में भाषा कितनी महत्वपूर्णं है. दुसरी तरफ लगभग सारे विश्वविद्यालयों में अन्य देशों की भाषा की पढाई को चालु कर दिया गया है. लेकिन विश्व को प्रथम विश्वविद्यालय और सबसे पुरानी भाषा संस्कृत (भाषाओं की माँ) देने वाला भारत अपनी भाषा का अस्तित्व खोते जा रहा हैं। 

भाषा और विकास का संबंध-
हम जब भी विकास की बात करते है तो अन्य विकसित देशों का उदाहरण देते है लेकिन हम यह गौर ही नही करते है की वाकई में उनके विकास का राज क्या है. हम जापान, चीन या अंग्रेजी भाषी देशों की बात करते है लेकिन यह कैसे भूल जाते है कि इन देशों ने विकसित होने के लिये अपने क्षेत्रिय भाषा को मजबूत किया है. क्योंकी विकास के लिये आम लाेगों का साथ व सहयोग बहुत जरूरी है. आम लोगों को विकास प्लान तो तभी समझ में आएगी की जब सारी जानकारी उनके अपने भाषा में होगी और तभी उनका सहयोग भी मिलेगा. विकास मॉडल तो हम पढते है लेकिन उसके बाधा पर बस एक ऊपरी नजर डालकर के पन्ना पलट कर रख देते है. विकास के लिये भाषा की अहम भूमिका होती है और सबसे बडी बाधा भी. इस बाधा को दूर करने के लिये हमें हिन्दी व अन्य क्षेत्रिय भाषाओं पर व्यापक रूप से कार्य करना ही पडेगा. अब तक अंग्रेजी को सिखने में ही हम काफी साल व्यतीत कर के भी सफल नही हो पाये है क्योंकी हम अपने भाषा में जितना सहज हाे सकते है, उतना अन्य भाषा में नही. 



भाषा विवाद से विकास नही होगा -

यह कोई राजनीतिक मुद्दा नही है लेकिन अब तक तो बस मुद्दाकरण ही होता आ रहा है, हिंदी व अन्य भारतीयों भाषाओं के साथ. अगर भाषा की बाधा को दूर करने के लिये काम किया गया होता तो आज हम विकास के लिये ललाहीत ना होते और गरीबी दूर करने वाली योजना बस फाइल में नहीं बंद रहती. योजनाएं तो बहुत है लेकिन भाषा के वजह से समस्या जैसी की तैसी बनी रहती है. जब नेता चुनाव प्रचार के लिये जाते है तो वहां के लोकल भाषा में भाषण देते है तो फिर जन समस्याओं को सुलझाने के लिये वह एेसा क्यों नही करते है. इसलिये भाषण के आधार पर वोट तो मिल जाता है लेकिन योजना तो समझ के परे की भाषा में आती है. 

कैरे टूटेगा भाषा का बैरियर-
- मीडिया अन्य भाषाओं को प्रयोग कर के अपने भाषा के मौलिकता को न खत्म करे.
- क्षेत्रिय,हिंदी व अंर्तराष्ट्रीय भाषा के आधार पर हो शिक्षा व्यवस्था.
- क्षेत्रिय,हिंदी व अंर्तराष्ट्रीय भाषा के आधार पर हो सरकारी कामकाज.


                                  तीन भाषा कॉन्सेप्ट(क्षेत्रिय,हिंदी व अंर्तराष्ट्रीय) के आधार पर काम किया जाये तो काफी हद तक हम जन समस्याओं को दूर कर सकते है. इस तरह से हम जल्द ही विकास कर पायेंगे और लोगों का रूझान अपने भाषा के प्रति बढेगा. खैर अन्य भाषा में पकड बनाना अच्छा है और दुसरी भाषा को भी जानना चाहिये लेकिन अपनी भाषा को छोड देना उचित नही है. हिंदी का क्षेत्र सिकुडता जा रहा है. क्योंकि हमने अन्य देशों की भाषाओं को ज्यादा बढावा दे रखा है. इसके पीछे कारण है की हिंदी में अब तक कोई कार्य विश्व स्तरीय रूप से नही हुआ है. यहां तक कि ना कोई विकास का मॉडल, ना थ्योरी और ना ही कोई ढंग की मीडिया की किताब ही मिलेगी तो एेसे में हमें भाषा के बढते दौर में हिंदी के ऊपर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

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