Sunday 18 December 2016

कैशलेश होने में नुकसान क्या है!


कैशलेश होने में नुकसान क्या है!

भले ही किसी टीवी डीबेट का मुद्दा नेशन वांट्स नोट हो पर खबर तो यह है कि अब जेब में पैसा ढ़ोने की कोई जरूरत नहीं है, पॉकेटमारों की छुट्टी. भारत अब कैशलेश हो कर भी धनी बनेगा, सोने की चिड़िया बनने की तैयारी. अब ऑनलाइन पेमेंट करना है, घपलाबाजी खत्म. सरकार से लेकर मीडिया बाजार तक सब के सब यही रट लगाए है, कैशलेश भारत सही तो कोई कह रहा बीजेपी की चाल. जिस फेसबुक और ट्वीटर पर एक-दूजे पर आरोप-प्रत्यारोप का बहस चलता था, अब वहां पर भी नोटबंदी का चर्चा चल रहा है. पहली बार ऐसा लगा की लोगों को देश की चिंता है पर यह सोंच गलत है क्योंकी लोगों को देश की चिंता नहीं जेब और पैसे की चिंता है. तभी तो सब के सब अपने-अपने धन को बचाने में लगे है, चाहे वह दस हजार वाला हो या फिर दस करोड़ वाला नागरिक. बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपय्या तो सुना था पर आज सबने देख लिया. और आज पैसे के कारण ही संसद को बंद कर दिया गया. लेकिन क्या ऐसा करना देशहित में है. कैशलेश को गलत बतलाकर खुद को बेहतर कहने वाले कालाधन छुपाना तो नहीं चाहते हैंनहीं तो फिर कैशलेश होने में क्या दिक्कत है. इस ऑनलाइन लेन-देन से घुसखोरी, चोरी या साफ शब्दों में कहे तो भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा. आप सब नेता गण तो भ्रष्टाचारमुक्त भारत चाहते है पर ऑनलाइन लेन-देन से डर क्यूं रहें हैं. इस कैसलेश के कारण अब गरीब और विधवाओं का पेंशन से मुखिया-सरपंच कमीश्न नहीं खाएंगे. कॉग्रेस को तो पक्ष में आना चाहिए क्योंकि इंदिरा आवास, मनरेगा जैसे मजदूर की कमाई पर कोई बिचौलिया हाथ नहीं फेरेगा. और भी बहुत फायदे हैं इसके. सबसे बड़ा फायदा तो यह दिख रहा है कि हरदिन करोड़ो कालाधन रखने वाले पकड़े जा रहे है जिसके कारण देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है. फिर आप बताइए क्या देश को फिर से धनी नहीं बनाना चाहिए? गरीबों का पैसा बिचौलियो को खाने देना चाहिए? कल तक तो आप सब देश को सोने की चिड़िया बनाने पर लगे थे, गरीबों के हक के लिए मरने तक को तैयार थे और अपने चुनाव रैली में घंटों खड़े हो जाते हैं फिर इस सकारात्मक काम के लिए क्यों पैर को पीछे खिंच कर रहे हैं. कहीं डर तो नहीं रहें हैं कि अब नोट के बदले वोट नहीं मिल पाएगाअरे, हां अब इस कैशलेश के कारण तो चुनाव भी साफ-सुथरा होना तय है. तो फिर आप अपने छवि के दम पर वोट लिजिए ना. अब गरीब लोगों का हवाला देकर कि, उनको नेट चलाने नहीं आएगा, नेटवर्क प्रॉबलम है, स्मार्ट फोन नहीं खरीद पाएंगे अगेरा-वगेरा...बात कर रहे हैं. पर आज के दौर में लगभग हर घर में युवा लड़का-लड़की है, जिनके पास मोबाइल है. जो बहुत गरीब है उसके पास भी किपेड यानि बटन वाला फोन है.जिसके माध्यम आसानी से हम ऑनलाइन पैसा भेज सकते है. कोई बड़ा देशभक्त बनकर फेसबुक पर लिखा कि पेटीएम इत्यादि के द्वारा विदेशी कंपनीयों को फायदा होगा तो हमें इसका विरोध करना चाहिए. पर विरोध के आग में वे भूल रहे हैं कि फेसबुक, व्हाट्सएप भारत का बना हुआ थोड़े ही है, जिसका उपयोग बेझिझक कर रहे हैं. दुसरी बात यह है कि जब आप व्हाट्सएप्प और फेसबुक चला रहे हैं, तो फिर इंटरनेट के माध्यम से बैंकिग और खरीददारी करने में क्यूं हिचकिचा रहें हैं. चैटींग,पोस्ट,ट्वीट करने में तो बड़ा मजा आ रहा है फिर निष्पक्ष तौर से लेन-देन करने का भी आनंद लिजिए, साहब.

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