Monday 9 November 2015

मूकदर्शक नहीं ,मार्गदर्शक बने युवा

मूकदर्शक नहीं ,मार्गदर्शक बने युवा --
युवाशक्ति राष्ट्र की अनूठी और अमिट बल हैं ,जिसके बढ़ते सकारात्मक  कदम  देश को विकास की ओर अग्रसर करते हैं और नकारात्मक कदम विनाश की ओर। इतिहास से लेकर आजतक और भारत से लेकर अमेरिका जैसे अन्य देशो की बात करे तो युवा शक्ति का अनेकों अनूठे उदहारण देखने को मिलेंगे। हाँ ,यह एक अलग बात हैं की हमारा आज का युवा समाज अपने पुरखों की बलिदान को भूल कर तीसरे - दर्जे के राष्ट्रों में शामिल हो गया हैं और अन्य पहले - दर्जे के देश अपने युवाओं व युवा - विचारो  के साथ आज हम जैसे देशों के लिए पथप्रदर्शक का काम रहे हैं। यानि कि  हमारा आज का समाज अपने विवेकानंद जैसे विवेकों - विचारों  को बिसार कर संसाधनों का मोहताज बना हुआ हैं। संसाधनों की कमी से विकास विलम्ब हो सकता हैं परन्तु रूक नहीं सकता क्यूँकि कल तो हमारे पास कुछ भी नहीं था फिर भी हमारे युवा अन्य देशों में जा कर के अपने विचारों से लोहा मनवाए और आज हमारे पास बहुत कुछ होते हुए भी हम लाचार बने फिर रहे हैं। आज का  लोकतांत्रिक - भारत अपने ७५ फ़ीसदी युवाओं के साथ भी खुद को आंतरिक - रूप से कमजोर महसूस कर रहा हैं क्यूंकि जिस लोकतंत्र को लेकर हम सबको समानता और आजादी दिए हुए हैं ,उस लोकतंत्र के ऊपर एक राजतंत्र का राज हो गया हैं और हम सब ख़ामोशी का लिबास ओढ़े यह चुपचाप बर्दाश्त कर रहे हैं। इस ख़ामोशी का वजह हैं की हम अपने समाज के प्रति जागरूक नहीं हैं ,स्वार्थ से भरे पड़े हैं और जागरूक लोगों को सहयोग नहीं कर रहे हैं अर्थात हम पथप्रदर्शक होने के बजाय मूकदर्शक बने फिर रहे हैं। १६वी लोकसभा चुनाव का परिवर्तन भी युवाओं का ही देन हैं परन्तु अब तक कोई ठोस फैसला हमारे - पक्ष में नहीं हुआ हैं और हम हैं की चुपचाप देखे जा रहे हैं। युवाओं का उदहारण देकर जीतने वाले नेता हमलोगो को अब तक कौन - सा स्थान दिए हैं ? ऐसा कहा जाता हैं की युवा हमेशा जोश व जल्दबाजी से काम करते हैं ,जिसके वजह से काम सफल नहीं हो पता हैं लेकिन हम युवाओं ने कभी ऐसा सोंचा हैं की आजादी से लेकर अबतक तो हमारे राष्ट्र का काम काफी अनुभवशील नेताओं के नेतृतव में ही हुआ हैं फिर क्यों हम दाने - दाने को मोहताज हैं ? युवाओं को अपने कर्तव्यों को समझने की जरूरत हैं , ना की बेसमझे हुए कार्यों के पीछे घूमने की। आज जरुरत हैं की सभी युवा अपने चुप्पी को तोड़ कर आगे निकले और मूकदर्शक ना बने और विवेकानंद और भगत के जैसे मार्गदर्शक बने ताकि हम फिर से सुनहले भारत का स्वप्न पूरा कर सके। 

No comments:

Post a Comment