खुद के हाथों से ही अपने चेहरे पर रंग लगाना होगा-"... तन के तार छूए बहुतों ने/ मन का तार न भीगा/ तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है. होली हमारी है और सच में जब तक कोई अपना न छू दे तो फिर ऐसी होली का क्या मतलब!
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रंगों
व पकवानों के त्यौहार होली में हर कोई बच्चों के जैसे मस्ती मिजाज से भरा
रहता है. क्योकिं फगुआ बयार का असर ही एेसा होता है और प्राकृतिक परिवर्तन
का मजेदार असर इसी मौसम में देखने को मिलता है. परिवर्तन तो इस कदर का होता
है कि बुजुर्ग भी जवान और गांवों की काकी भाभी बन जाती है. यूं कहे की
बसंती बयार सब लोगों के हया के लिबास को उडा ले जाती है. इसलिये तो देश
विदेश में रहने वाले होली में घर आने को बेकरार हाे जाते है और स्पेशल
ट्रेनों को पकड कर के घर की ओर खींचे चले आते है. वैसे त्यौहार का खास असर
उत्तर भारत में ज्यादा देखने को मिलता है लेकिन धीरे धीरे इसका प्रचलन अन्य
प्रदेशों व देशों में भी देखने को मिल रहा है. हमारे पडोसी देश पाकिस्तान
ने तो इस बार हाेली मना कर के एक नायाब तोहफा दिया है. वैसे अगर होली मनाने
के पीछे तो कई तथ्य दिये गये है लेकिन इसके बढते रोचकता को देखते हुये कहा
जा सकता है कि होली तो बस मिलन कराने का माध्यम है, शिकवा गिला को भुलाने
का दिन है और प्यार भरे मौसम से मस्ती चुराने व लूटाने का दिन है. ऐसे
मौसम में कविता, शेरो शायरी तो यूं ही निकलने लगती है. तो आप खुद सोंचिये
की इस होली को मनाने का क्या राज है. जोगीरा (होली में गाया जाने वाला
प्रमुख गीत) जिसके एक सा रा सरा रारारारा से समां भर जाती थी लेकिन यह
परम्परा अब खत्म हो रही है क्योंकी इसकी जगह तो अश्लील गानों व डीजे ने ले
ली है. लेकिन इस मौसम का मजा अब किरकिरा हाे रहा है, जब हम शराब, गांजा
इत्यादी का सेवन कर लेते है और मारपीट व छेडछाड कर के अपने साथ साथ अन्य
लोगों को भी मुसीबत में डाल देते है. इन्हीं सब के वजह से होली के दिन बहुत
लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकले और इस त्यौहार को हम शराब व अश्लीलता का
पहचान दे कर के इसकी शालीनता व उमंग का विलय कर रहे है. घर घर घुम कर के
रंग गुलाल लगाना व जाेगीरा का आनंद उठाना खत्म हो रहा है. अब तो हम पुआ
पकवान का मिठास भी भूल गये है. लेकिन इस
कदर सिलसिला जारी रहेगा तो एक दिन ऐसा आयेगा की हमें खुद के हाथों से ही
अपने चेहरे पर रंग लगाना होगा. माखन लाल चतुर्वेदी विवि. के विभागाध्यक्ष
पीपी सिंह के फेसबुक वाॅल की यह पंक्तियां तुम अपने रंग में रंग लो तो
होली है / देखी मैंने बहुत दिनों तक/ दुनिया की रंगीनी/ किंतु रही कोरी की
कोरी/ मेरी चादर झीनी/ तन के तार छूए बहुतों ने/ मन का तार न भीगा/ तुम
अपने रंग में रंग लो तो होली है. होली हमारी है और सच में जब तक कोई अपना न छू दे
तो फिर ऐसी होली का क्या मतलब!
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