'बिहारी पानी' का बंद होना ही नशामुक्ति!- "उसके बाद गुटखा, पान मसाला बन गया. इतना ही नही सरकारी कर्मचारी ही गुटखा खा कर अपना दांत व कार्यालय खराब कर के रखे हुये है तो फिर आम जनता से क्या उम्मीद किया जा सकता है. "
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शराब
तो शराब है चाहे आप एक बूंद ले या फिर एक बोतल, देशी ले या विदेशी. दारू व
समाज का सबंध तो सदियों पुराना है और आज भी है. लेकिन उस वक्त मदिरा बस
मदिरा होता था. आज तो अलग अलग नाम से शराब बिकते है और विदेशी शराब ने तो
भारत को अपने वश में ही कर लिया है. ठीक वैसे ही जैसे की कोई सेठ आदमी किसी
गरीब को कर लेता है, जी हुूजुरी के लिये या फिर जमीन हडपने के वास्ते. खैर
मनसूबा जो भी हो लेकिन इतना तो है कि शराब का लत ठीक नहीं होता है, चाहे
देशी हो या विदेशी. गांवो में देशी पी कर रामा बरबाद हाे गया और शहर का
विदेशी दारू गटक कर मालया. ये दोनों अब अस्पताल में पडे अल्कोहाल का उचित
रूप में सेवन कर रहे है लेकिन दोनों का बच जाना तो मुमकिन नहीं है. और ना
जाने कितने है शराब के लूटे हुये. शराब ने भारत को गरीब बनाने में अपनी
सक्रिय भूमिका निभाई है, हालांकि यह आम बहाने की बात है की इससे दर्द दूर
होता है, चाहे वह दर्द दिल टूटने का हो या मेहनत मजदुरी का. बहाना इसलिये
कहा क्योंकी की दर्द दूर करने के लिये तो दूध व हल्दी से तो बेहतर तो कुछ
भी नहीं है लेकिन क्या करें पीने वालों को तो बस बहाना चाहिये और समय जो भी
हो रहा हो भट्ठी खुला होना चाहिये. यह बहाना और भट्ठी छोटी है लेकिन कितने
घर परिवार को इसने तबाह कर दिया और अभी पता नही कितने होंगे. इस बरबादी से
हर कोई वाकिफ है लेकिन क्या करे जब हमारी सरकार ही इसे लाइसेंस दे रखी है.
जितने हमारे यहां विद्यालय नही है उतने तो मदिरालय है. हमारे
अर्थशास्त्रीयों के अनुसार यह लाभकारी है क्योंकी सबसे ज्यादा कर वसूली का
यह केंद्र है, लेकिन घर को जलाकर घर बनाना विकास है क्या! शराब होने वाले
नुकसान को हर कोई जानता है क्योंकी लगभग हर घर में देशी विदेशी पीने वाले
मिल ही जायेंगे. आज के दिनों में शराब हमारे समाज का पहचान बन चुका है और
खास कर के बिहार राज्य तो बदनाम है शराब के वजह से. बिहार के पीने वालों ने
हर राज्य में अपना छाप छोडा है और अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम है
जैसे बिहारी पानी, झिल्ली, पाउच, इत्यादी. इसमें बुरा मानने वाला कोई बात
नही है क्योंकी गुनाहगार तो दोनो है क्योंकी पीने वाले के साथ साथ पीलाने
वाले भी भागीदार है. शराब को बंद करने व बिहार को नशामुक्त करने के लिये
सरकार ने कदम तो उठा लिया है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से अपील
भी किया है. बिहार के लोगों में कुमार के प्रति प्यार तो है लेकिन इस प्यार
के लिये शराब से नाता तोडना क्या मंजूर करेंगे लोग. गुटखा को बंद करने के
लिये भी सरकार ने कदम उठाये लेकिन उसके बाद गुटखा, पान मसाला बन गया. इतना
ही नही सरकारी कर्मचारी ही गुटखा खा कर अपना दांत व कार्यालय खराब कर के
रखे हुये है तो फिर आम जनता से क्या उम्मीद किया जा सकता है. केवल देशी
शराब के बंद होने से न शराब से मुक्ति मिलेगा और संभावना है की देशी सेवन
वाले अब कमाई का एक भी रुपया घर पर न दे, अनाज बेच कर पीने वाला गहना बेचने
लगे और कुछ हो न हाे शराब माफिया इसका नाम बदलकर बिहारी पानी तो दे ही
देंगे क्योंकी यह केवल बडे फायदे का सौदा जो है. अगर मुनाफा नहीं है तो फिर
शराब को ही बंद कर देना चाहिये, चाहे वह देशी हो या विदेशी.
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